भगवद गीता में चिंता (Anxiety) का सर्वोत्तम समाधान
भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, वे आज भी हमें चिंता, भय और तनाव से मुक्त होने का मार्ग दिखाते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख श्लोकों के माध्यम से चिंता का कारण और समाधान बताया गया है।
1. Anxiety/चिंता का कारण – आसक्ति और भय (भगवद गीता 2.62-63)
“ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते।
संगात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥”
(भगवद गीता 2.62)
“क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥”
(भगवद गीता 2.63)
अर्थ:
- जब हम किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति अत्यधिक आसक्त हो जाते हैं, तो उससे इच्छा (कामना) उत्पन्न होती है।
- जब वह इच्छा पूरी नहीं होती, तो क्रोध आता है।
- क्रोध से मोह (भ्रम) उत्पन्न होता है, जिससे स्मृति (याददाश्त) और बुद्धि का नाश हो जाता है।
- जब बुद्धि नष्ट हो जाती है, तो व्यक्ति विनाश की ओर बढ़ता है।
♦ Anxiety/चिंता और भय का मूल कारण अत्यधिक आसक्ति और अपेक्षाएँ हैं।
2. Anxiety/चिंता के समाधान – कर्म पर ध्यान दो, फल की चिंता मत करो (भगवद गीता 2.47)
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥”
(भगवद गीता 2.47)
अर्थ:
- तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, लेकिन फल की चिंता मत करो।
- फल की इच्छा से कर्म मत करो और आलस्य (अकर्मण्यता) में मत पड़ो।
♦ श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि Anxiety/चिंता तब होती है जब हम सिर्फ परिणाम (Result) के बारे में सोचते हैं। हमें केवल अपने प्रयास (Efforts) पर ध्यान देना चाहिए।
3. सफलता-असफलता में समभाव (भगवद गीता 2.48)
“योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥”
(भगवद गीता 2.48)
अर्थ:
- हे अर्जुन! सफलता और असफलता में समभाव रखकर कर्म करो।
- समत्व भाव (Balance) ही योग कहलाता है।
♦ जब हम परिणाम की Anxiety/चिंता छोड़कर संतुलित भाव रखते हैं, तो चिंता नहीं होती।
4. भय से मुक्ति का मार्ग (भगवद गीता 18.66)
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥”
(भगवद गीता 18.66)
अर्थ:
- सभी धर्मों (कर्तव्यों) को छोड़कर बस मेरी शरण में आ जाओ।
- मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, चिंता मत करो।
♦ श्रीकृष्ण यहाँ हमें सिखाते हैं कि जब हम पूर्ण रूप से ईश्वर में विश्वास रखते हैं, तो हमारे भय और Anxiety/चिंता समाप्त हो जाते हैं।
5. मन का नियंत्रण (भगवद गीता 6.6)
“बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्॥”
(भगवद गीता 6.6)
अर्थ:
- जिसका मन उसके नियंत्रण में है, वह उसका सबसे अच्छा मित्र है।
- लेकिन जिसका मन अशांत है, वह स्वयं का सबसे बड़ा शत्रु है।
♦ अनियंत्रित मन ही Anxiety/चिंता और तनाव का कारण बनता है। ध्यान और भक्ति से मन को शांत किया जा सकता है।
निष्कर्ष: भगवद गीता के अनुसार Anixty/चिंता से मुक्ति कैसे पाएं?
- फल की चिंता छोड़ो – बस अपने कर्म पर ध्यान दो (2.47)।
- सफलता-असफलता में समान रहो – दोनों को स्वीकार करो (2.48)।
- भगवान पर विश्वास रखो – ईश्वर तुम्हारी चिंता मिटा देंगे (18.66)।
- मन को नियंत्रित करो – ध्यान और भक्ति से मन को शांत करो (6.6)।
→ अगर हम इन शिक्षाओं को जीवन में उतारें, तो चिंता स्वतः ही समाप्त हो जाएगी।
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